शिव शंकर चले कैलाश – यह गीत भगवान शिव और पार्वती के युगल छवि का वर्णन करता है इस गीत में शिव शंकर और पार्वती के माध्यम से पूरा गीत गाया गया है
एक और जहां शिव शंकर को प्रिय भांग से जोड़कर यह गीत रचा गया है वही मां पार्वती अपने हाथों में मांगलिक कार्य हेतु मेहंदी का संदर्भ लेकर यह गीत जोड़ा गया है कुल मिलाकर यह गीत सुनने और गाने में बेहद ही आकर्षक और मनोरंजक है साधक इस गीत को गाने मात्र से एक खुशी की अनुभूति करता है।
शिव शंकर चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
भोले बाबा चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
भोले बाबा चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
गौरा जी ने बोए दई हरी हरी मेहन्दी,
भोले बाबा ने बोए दई भांग,
की बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
भोले बाबा चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
गौरा जी ने सिच दई हरी हरी मेहन्दी,
भोले बाबा ने सिच दई भांग,
की बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
भोले बाबा चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
गौरा जी ने काट लई हरी हरी मेहन्दी,
भोले बाबा ने काट लई भांग,
की बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
भोले बाबा चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
गौरा जी ने पीस लई हरी हरी मेहन्दी,
भोले बाबा ने घोट लई भांग,
की बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
भोले बाबा चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
गौरा जी की रच गई हरी हरी मेहन्दी,
भोले बाबा को चढ़ गई भांग,
की बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले…….
शिव शंकर चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी,
भोले बाबा चले रे कैलाश,
की बुंदिया पड़ने लगी
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