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शिव से गौरी न वियाहब शारदा सिन्हा मेहंदी विवाह गीत shiv se gauri na biyahab lyrics

शिव से गौरी न वियाहब गीत शारदा सिन्हा द्वारा गया है | इसके बोल आज हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं | मेहंदी विवाह गीत

शिव से गौरी न वियाहब

शारदा सिन्हा मेहंदी विवाह गीत

शिव से गौरी न बियाहब , हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब , हम  जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब , हम जहरवा खइबे न

लौटे जोन देहिया पर नगवा नगीनिया ,लौटे जोन देहिया पर नगवा नगीनिया

भूत बेताल जेकर संगिया संगीनिया ,भूत बेताल जेकर संगिया संगीनिया

सेकरा जमाई करके कैइसे उतारब ,सेकरा जमाई करके कैइसे उतारब

हम जहरवा खइबे न ,हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

बसहा सवार कोई दुल्हा न सूनली ,बसहा सवार कोई दुल्हा न सूनली

रूप – रंग देखली त डरे आंख मूंदली ,रूप – रंग देखली त डरे आंख मूंदली

बुढ़वा के सौंप गौरी कुइयां में ना डालब ,बुढ़वा के सौंप गौरी कुइयां में ना डालब

हम जहरवा खइबे न ,हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

गौरी सुकूमार मोरे दूल्हा ठठरिया ,गौरी सुकूमार मोरे दूल्हा ठठरिया ,

बेटी हमार न अनगढ़ मोटरिया ,बेटी हमार न अनगढ़ मोटरिया

कौन कमी के चलते अइसे निबाहब ,कौन कमी के चलते अइसे निबाहब

हम जहरवा खइबे न ,हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

शिरीष के फूल ऊपर बाजे ना बलईबई ,शिरीष के फूल ऊपर बाजे ना बलईबई

गोरी के हाथ शिव के हाथे न धरईबई ,गोरी के हाथ शिव के हाथे न धरईबई

जानबूझ बेटी के न जिंदगी तबाहब  ,जानबूझ बेटी के न जिंदगी तबाहब

हम जहरवा खइबे न ,हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न

शिव से गौरी न बियाहब  , हम जहरवा खइबे न। ।

कठिन शब्द सरल हिंदी में –

खइबे – खाना , देहिया – शरीर , संगिया संगीनिया – सगे सम्बन्धी , मूंदली -बंद करना , कुइयां – कुंआ  , अनगढ़ मोटरिया – बेकार की वस्तु या गठरी , निबाहब – निपटना  ,  शिरीष – जंगली फूल ,

गीत का हिंदी अनुवाद –

शिव विवाह का प्रसंग है , गौरी का विवाह शिव से होना तय हुआ है। इस प्रसंग पर देवी गौरी की माता अपने दमाद को देखकर बहुत दुखी होती है , और ऐसे दमाद को स्वीकार करने से अच्छा वह जहर खाना पसंद करती है वह कहती हैं –

जिनके शरीर पर नाग – नागिन का वास रहता है। भूत – बेताल जिनके सगे – संबंधी है , उसको मैं जमाई कैसे बना सकती हूं ? उससे अपने गोरी का विवाह कैसे कर सकती हूं। इससे अच्छा है कि हम जहर खा कर मर जाएं।

शिवजी अपने विवाह में सभी को आमंत्रित करते हैं जिसमें भूत – पिशाच , देव , गंधर्व आदि जितने भी पृथ्वी पर विचरण करने वाले हैं वह सभी शिव जी के बारात में भागी बनने के लिए सम्मिलित होते हैं। यह देखकर गौरी की माता डर जाती है। कोई बैल पर सवार है कोई गधे पर सवार है तो कोई नाचता गाता भूत – पिशाच की तरह। जिसका  रूप – रंग देखकर वह डर जाती है और आंख मूंद लेती हैं। वह कहती हैं कैसे इस प्रकार बूढ़े  शिवजी को अपनी गोरी सौंपकर मैं अपनी पुत्री को कुएं में नहीं डाल सकती हूं , और ऐसा करने से पहले मैं जहर खा के मर जाना चाहती हूं।

और कहती हैं कि गोरी में जो सुकुमार है , और दूल्हा ठेठ जिसका पहनने  ओढ़ने  का कोई सलीका नहीं। पहाड़ों पर निवास करने वाले जिनके शरीर पर श्मशान की भभूति लिपटी हुई है।  नाग – नागिन जिनके शरीर पर वास करते हैं। ऐसे दूल्हे के हाथ में मैं अपने गोरी को नहीं सौंपुंगी। मेरी पुत्री कोई बेकार की वस्तु नहीं है , गठरी नहीं है जिसे मैं निपटाना चाहती हूं। ऐसी क्या कमी है मेरी पुत्री में किस प्रकार से विवाह करूं इसलिए विवाह करने से अच्छा मैं जहर खाना पसंद करती हूं।

जो शिरीष का फूल दुर्लभ होता है वह केवल देखने ही नहीं अच्छा होता है उसका कोई शगुन नहीं किया जाता। ऐसे ही शिव हैं जिनके हाथ में मैं अपनी गोरी का हाथ नहीं देना चाहती हूं और कौन ऐसी मां होगी जो अपनी बेटी को जानबूझकर जिंदगी तबाह करना चाहती है या चाहेगी ? ऐसा कहते हुए गौरी की माता व्यथित होती हैं और रोते हुए जहर खाने की बात कहती हैं , और शिव से गौरी की विवाह का विद्रोह करती हैं।

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